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Sunday, February 20, 2011

जी लेने दो...


कतरा-कतरा ज़िंदगी का
पी लेने दो
बूँद बूँद प्यार में
जी लेने दो

हल्का-हल्का नशा है
डूब जाने दो
रफ्ता-रफ्ता “मैं” में
रम जाने दो

जलती हुई आग को
बुझ जाने दो
आंसूओं के सैलाब को
बह जाने दो

टूटे हुए सपने को
सिल लेने दो
रंज-ओ-गम के इस जहां में
बस लेने दो

मकाँ बन न पाया फकीरी
कर लेने दो
इस जहां को ही अपना
कह लेने दो

तजुर्बा-ए-इश्क है खराब
समझ लेने दो
अपनी तो ज़िंदगी बस यूं ही
जी लेने दो

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  2. जिंदगी जैसी भी है , मेरी है , मेरे ही अंदाज़ में जी लेने दो ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति !

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