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Friday, March 4, 2016

প্রেম মানে

প্রেম মানে চুপচাপ টুপটাপ গল্প
 প্রেম হলো আদরের আষাঢে স্বপ্ন
প্রেম মানে বিশ্বাস প্রাণ ভরা নিশ্বাস
ছোট কোনো গল্পের পুরনতার আশ্বাস

প্রেম যদি দিক্ভ্রম তবে কেন ছড়ানো
বসন্তে নানারঙে নানাদিক রাঙানো
বৃষ্টিতে ভেজে মন...প্রেম ধুয়ে জাযে না
দিক্ভ্রম হয়ে যারা-প্রেম তার সয়ে না

প্রেম যদি ওলঢাল করে এই মনটা
তাহলে কি পারবে ঠেকাতে জীবনটা
শিমুলের ফুল আর বাসন্তী কুহুডাক
ছড়াও ভালবাসা - পৃথিবীর হাঁকডাক

প্রেমহীন জীবনের নেই কোনো সত্তা
ভাষা চোখ বাঁকা চাঁদ সব ই যেন যা তা
আমি আর তুমিতেই জীবনটা কাটবে
ভালবাসা ছাড়া এই ধরায় কে বাঁচবে 

Wednesday, August 28, 2013

कृष्ण जन्माष्टमी पर.…….













मधुर तेरा अंदाज़ 
मनहर सुर और नटवर साज़ 
भागे क्यों मन सुन आवाज़ 
सुरताल का तू सरताज 
मनभाया तेरा अंदाज़  !!

मधुर तेरी मुस्कान 
विरहा ये मन पाए सुकून 
सुन मधुर बंसी की धुन 
किस बगिया से लाया चुन 
मन भागे पीछे पुन-पुन  !!

मधुर तेरी माया 
बारिश की बूँदें रिमझिम 
इस तन पर लगे सुर सम 
सुन गुहार वंशी वाले 
दे दरस छंट जाये तम !!

मधुर तेरी बंसी 
सुन नृत्य करे धरा छम-छम 
फूल खिले गुलशन -गुलशन 
ताल - नदी- झरने-सागर 
बात जोहते है क्षण-क्षण !!

मधुर तेरी पूजा 
हे बंसीधर बंसी बजैया 
पार लगाओ हमारा खेवैया 
माया - मोह से हमें उबारो 
सुनाकर मोक्षदायिनी धुन !!

Thursday, May 31, 2012

जलधि विशाल...आज गंगा दशहरा के पर्व पर

जलधि विशाल तरंगित ऊर्मि
नीलांचल नाद झंकृत धरणी 
कल-कल झिन्झिन झंकृत सरिता 
पारावार विहारिणी गंगा 


तरल तरंगिनी त्रिभुवन तारिनी 
शंकर जटा  विराजे वाहिनी 
शुभ्रोज्ज्वल चल धवल प्रवाहिनी 
मुनिवर कन्या हे ! भीष्म जननी 




पतित उद्धारिणी जाह्नवी गंगे 
त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे 
महिमा तव गाये धरनीचर 
मोक्ष प्राप्त हो जाए स्नान कर 


हरिद्वार  काशी पुनीत कर 
बहे निरंतर कल-कल छल-छल 
सागर संगम पावन पयोधि 
गोमुख उत्स स्थान हे वारिधि 


सर्वदा कल्याणी द्रवमयी 
मोक्षदायिनी जीवनदात्री 
बारम्बार नमन हे जाह्नवी 
वरदहस्त रखना करुणामयी 

Wednesday, February 8, 2012

नदी के पार....

नदी के पार कोई गाता गीत 
उस स्वर में बसा है मन का मीत 
नदी की लहरों खेतों से उठकर 
आती ध्वनि मन लेता जीत 

होगा इस पार जो लेगा सुन 
इस देहाती गानों का उधेड़-बुन 
इन एकाकी गानों को सुनकर 
मरकर भी जी लेगा पुन-पुन 

भानु-चन्द्र का है आलिंगन 
प्रकाश से भरा है लालिमांगन 
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से 
राग-अनुराग का आलापन 

Tuesday, October 25, 2011

मेरी गली से

मेरी गली से जब भी गुजरीं वो
खुशबू का सैलाब सा बह गया
रूह तक पहुंची वो खुशबू-ए-उल्फत
मुहब्बत का तकाजा बढ़ गया
दिल के दामन में आकर
धूम मचाकर रख दिया
सपनो में भी चैन न आया
वो आयी और मै दीवाना हो गया
इश्क जब सर पर चढ़ा
वो बेवफा चिड़िया सी फुर्र हुई
अब तो ये हाल है जानम
मालूम नहीं कब दिन हुआ कब रात हुई

Saturday, July 16, 2011

ज़िन्दगी से ....



ज़िन्दगी  से बस यूं ही
 चन्द बातें हुई
 चमन में आये बहार से
 एक मुलाकात हुई

 जलते चिरागों तले
 रोशनी नहीं होती
 चिराग  तले अँधेरे में
 ज़िन्दगी दीदार हुई

 हर तरफ भीड़ है
 हर शख्स है परेशान
इस दुनिया  में ज़िन्दगी
 तू ही है तनहा खडी

Monday, April 18, 2011

बात ...दिल की


घुप्प रात का अँधेरा 
परछाई का नहीं नामोनिशाँ
फिर ये साया कौन? 
जो मेरा हमराही है बन रहा 

तुझसे बिछड़कर मरने का 
कोई इरादा तो नही 
इश्क किया है तुझसे 
पर इतना बेपनाह तो नही 

एकटक सितारों को क्यों देखते हो 
इन सितारों से मिलने का तमन्ना तो नहीं ?





Tuesday, March 29, 2011

तेरी यादों में ...









आँखों में आंसूं भरे है तेरी यादों में
हलक से पानी न उतरा तेरी यादों में 
हर आहट तेरे आने का आस जगाये 
भरी महफ़िल से हम उठकर चले आये 
                                           तेरी यादों में 
दिल का दर्द नासूर बन गया तेरी यादों में 
बह रही है आंसूओं की धार तेरी यादों में 
टूटा जो नाज़ुक दिल जुड़ न पाया 
रग-रग टूटा जाए तेरी यादों में 






Friday, March 18, 2011

यारा लगा मन


यारा लगा मन फकीरी में 
न डर खोने का 
न खुशी कुछ पाने का 
ये जहां है अपना 
बीते न दिन गरीबी में 

यारा लगा मन फकीरी में 

जब से लागी लगन उस रब से 
मन बैरागी सा हो गया 
पथ-पथ घूमूं ढूंडू पिया को 
ये फकीरा काफ़िर बन गया 

मन फकीरा ये जान न पाए 
आखिर उसे जाना है कहाँ 
रब दे वास्ते ढूंडन लागी 
रास्ता-रास्ता गलियाँ-गलियाँ 

क्या करूँ कुछ समझ न आये 
उस रब दे मिलने के वास्ते 
ढूँढ लिया सब ठौर-ठिकाने 
गली,कूचे और रास्ते 

जाने कब जुड़ेगा नाता 
और ये फकीर तर जावेगा 
सूख गयी आँखे ये देखन वास्ते 
रब ये मिलन कब करवावेगा
 ..

Sunday, March 6, 2011

जो आनंद है ............


जो आनंद है फूल गंध में 
जो आनंद है पंछी धुन में 
जो आनंद है अरुण आलोक में 
जो आनंद है शिशु के प्राण में 
जिस आनंद से वातास बहे 
जिस आनंद में सागर बहे 
जो आनंद है धूल कण में 
जो आनंद है तृण दल में 
जिस आनंद से आकाश है भरा 
जिस आनंद से भरा है तारा 
जो आनंद है सभी सुख में 
जो आनंद है बहते रक्त-कण में 
वो आनंद मधुर होकर 
तुम्हारे प्राणों पर  पड़े झरकर 
वो आनंद प्रकाश की तरह 
रह जाए तुम्हारे जीवन में भरकर 


कवि श्री सुकुमार राय के कविता से अनुदित

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