नदी के पार कोई गाता गीत
उस स्वर में बसा है मन का मीत
नदी की लहरों खेतों से उठकर
आती ध्वनि मन लेता जीत
होगा इस पार जो लेगा सुन
इस देहाती गानों का उधेड़-बुन
इन एकाकी गानों को सुनकर
मरकर भी जी लेगा पुन-पुन
भानु-चन्द्र का है आलिंगन
प्रकाश से भरा है लालिमांगन
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से
राग-अनुराग का आलापन
भानु-चन्द्र का है आलिंगन
ReplyDeleteप्रकाश से भरा है लालिमांगन
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से
राग-अनुराग का आलापन ...
बहुत सुन्दर!!!
भानु-चन्द्र का है आलिंगन
ReplyDeleteप्रकाश से भरा है लालिमांगन
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से
राग-अनुराग का आलापन
....बहुत भावमयी सुंदर रचना...
भानु-चन्द्र का है आलिंगन
ReplyDeleteप्रकाश से भरा है लालिमांगन
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से
राग-अनुराग का आलापन.
प्रेम पगी सुंदर अभिव्यक्ति.
बहुत ही सुन्दर प्यारी रचना...
ReplyDeleteसुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति, इस रचना के लिए आभार " सवाई सिंह "
ReplyDeleteभानु-चन्द्र का है आलिंगन
ReplyDeleteप्रकाश से भरा है लालिमांगन
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से
राग-अनुराग का आलापन
बहुत सुन्दर!