जलधि विशाल तरंगित ऊर्मि नीलांचल नाद झंकृत धरणी कल-कल झिन्झिन झंकृत सरिता पारावार विहारिणी गंगा तरल तरंगिनी त्रिभुवन तारिनी शंकर जटा विराजे वाहिनी शुभ्रोज्ज्वल चल धवल प्रवाहिनी मुनिवर कन्या हे ! भीष्म जननी पतित उद्धारिणी जाह्नवी गंगे त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे महिमा तव गाये धरनीचर मोक्ष प्राप्त हो जाए स्नान कर हरिद्वार काशी पुनीत कर बहे निरंतर कल-कल छल-छल सागर संगम पावन पयोधि गोमुख उत्स स्थान हे वारिधि सर्वदा कल्याणी द्रवमयी मोक्षदायिनी जीवनदात्री बारम्बार नमन हे जाह्नवी वरदहस्त रखना करुणामयी |
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"यहाँ देखो,भारतमाता धीरे-धीरे आँखे खोल रही है . वह कुछ ही देर सोयी थी . उठो, उसे जगाओ और पहले की अपेक्षा और भी गौरवमंडित करके भक्तिभाव से उसे उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो!" ___स्वामी विवेकानंद
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Thursday, May 31, 2012
जलधि विशाल...आज गंगा दशहरा के पर्व पर
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सर्वदा कल्याणी द्रवमयी
ReplyDeleteमोक्षदायिनी जीवनदात्री
बारम्बार नमन हे जाह्नवी
वरदहस्त रखना करुणामयी
samayik prastuti ke liye abhaar ...
वाह !!माता गंगा के लिए प्रयुक्त एक एक शब्द अनमोल..
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्द संयोजन...
जय माँ गंगे !!!
तरल तरंगिनी त्रिभुवन तारिनी
ReplyDeleteशंकर जटा विराजे वाहिनी
शुभ्रोज्ज्वल चल धवल प्रवाहिनी
मुनिवर कन्या हे ! भीष्म जननी
बहुत सुन्दर . ..गंगे माँ की अविरल बहती पावन धारा..कल कल छल छल का सटीक वर्णन
जय गंगे माँ आइये इन्हें पवित्र बनाये रखें
भ्रमर ५
पतित उद्धारिणी जाह्नवी गंगे
ReplyDeleteत्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे
महिमा तव गाये धरनीचर
मोक्ष प्राप्त हो जाए स्नान कर
वाह गंगा का कितना तरल वर्णन ।
बहुत सुन्दर
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