यारा लगा मन फकीरी में
न डर खोने का
न खुशी कुछ पाने का
ये जहां है अपना
बीते न दिन गरीबी में
यारा लगा मन फकीरी में
जब से लागी लगन उस रब से
मन बैरागी सा हो गया
पथ-पथ घूमूं ढूंडू पिया को
ये फकीरा काफ़िर बन गया
मन फकीरा ये जान न पाए
आखिर उसे जाना है कहाँ
रब दे वास्ते ढूंडन लागी
रास्ता-रास्ता गलियाँ-गलियाँ
क्या करूँ कुछ समझ न आये
उस रब दे मिलने के वास्ते
ढूँढ लिया सब ठौर-ठिकाने
गली,कूचे और रास्ते
जाने कब जुड़ेगा नाता
और ये फकीर तर जावेगा
सूख गयी आँखे ये देखन वास्ते
रब ये मिलन कब करवावेगा
..
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
न डर खोने का
ReplyDeleteन खुशी कुछ पाने का ....
:-)
शुभकामनायें होली पर !
सुन्दर प्रस्तुति ...होली की शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहद उम्दा ……………एक बार ये लत लग जाये बस उसके बाद और चाहत बचती ही कहां है………………आपको और आपके पूरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबधाई हो ,उम्दा रचना
ReplyDeleteसुरक्षित , शांतिपूर्ण और प्यार तथा उमंग में डूबी हुई होली की सतरंगी शुभकामनायें ।
सूफ़ियाना रंग में रंगी बहुत उत्कृष्ट रचना...होली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDelete