घुप्प रात का अँधेरा परछाई का नहीं नामोनिशाँ फिर ये साया कौन? जो मेरा हमराही है बन रहा तुझसे बिछड़कर मरने का कोई इरादा तो नही इश्क किया है तुझसे पर इतना बेपनाह तो नही एकटक सितारों को क्यों देखते हो इन सितारों से मिलने का तमन्ना तो नहीं ? |
---|
"यहाँ देखो,भारतमाता धीरे-धीरे आँखे खोल रही है . वह कुछ ही देर सोयी थी . उठो, उसे जगाओ और पहले की अपेक्षा और भी गौरवमंडित करके भक्तिभाव से उसे उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो!" ___स्वामी विवेकानंद
IMG
Followers
"Google-transliterate"
Type in Hindi (Press Ctrl+g to toggle between English and Hindi)
Monday, April 18, 2011
बात ...दिल की
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment