आसमान में बादल छाया
छुप गया सूरज शीतल छाया
मेरे इस उद्वेलित मन ने
कविता रच डाली
ठंडी हवा का झोंका आया
कारी बदरी मन भरमाया
मन-मयूर ने पंख फैलाकर
कविता रच डाली
गीली मिटटी की खुश्बू से
श्यामल-श्यामल सी धरती से
मन के अन्दर गीत जागा और
कविता रच डाली
ये धरती ये कारी बदरी
मन को भरमाती ये नगरी
उद्वेलित कर गयी इस मन को और मैंने
कविता रच डाली
उद्वेलित कर गयी इस मन को और मैंने
ReplyDeleteकविता रच डाली..
बहुत सही कहा है...जब मन उद्वेलित हो जाता है तभी मन के उदगार कविता के रूप में ढल जाते हैं..बहुत सुन्दर
आपने तो बहुत खूबसूरत रचना रच डाली।
ReplyDeleteबसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ!
अना जी,
ReplyDeleteआपने केवल कविता ही नहीं रची बल्कि मन में उमड़ते हुए भावों को कागज़ पर उकेर कर अभिव्यक्ति के विशाल आकाश के उत्पत्ति की संभावना को रचा है !
बहुत बहुत बधाई !