"यहाँ देखो,भारतमाता धीरे-धीरे आँखे खोल रही है . वह कुछ ही देर सोयी थी . उठो, उसे जगाओ और पहले की अपेक्षा और भी गौरवमंडित करके भक्तिभाव से उसे उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो!" ___स्वामी विवेकानंद
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Friday, January 14, 2011
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दिल को छू गयी यह कविता.
ReplyDeleteसादर
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ओ! हवा की लहरों
बहुत सुन्दर!
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