सोचा रुक न पाएगा
ये आंसुओं का खेला
हर दिन इस राह पर
कितने फूल माला से
जाता है झर
न जाने कब आया
ये विस्मरण का बेला
दिनों-दिन कठोर हुआ
ये वक्ष-स्थल , सोचा था -
बहेगा नहीं ये अश्रु जल
अचानक देख तुझे राह में
रुदन ये निकला जाए न थमे ,
विस्मरण के तले तले था
अश्रुजल का खेला
गुरुदेव की रचना से अनुदित
अनुवाद बहुत सुन्दर किया है आपने!
ReplyDeleteअपके सुंदर अनुवाद ने गुरूदेव जी की रचना के मौन सौंदर्य को मुखरित कर दिया है. बधाई. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर अनुवाद ...
ReplyDeleteउत्तम अनुवाद। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteविचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है
bahut achche.
ReplyDeletevah kya baat hai
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा अनुवाद किया है आपने. आभार आपना गुरुदेव जी को पढवाने के लिए.
ReplyDeleteaap sab kaa dhanyavaad
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