सुन्दर ये मुखड़ा
चाँद का टुकडा
नयन विशाल है
अधर कोमल
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कटिबंध अनुपम
वलय निरूपम
कही है हीरक
कही कंचन
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नुपुर से सज्जित-
पग है, राजित -
घुंगर की ध्वनि
मृदु मद्धिम
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स्वर्णिम ये काया
मन में समाया
नायिका सी
सुन्दर है चलन
"यहाँ देखो,भारतमाता धीरे-धीरे आँखे खोल रही है . वह कुछ ही देर सोयी थी . उठो, उसे जगाओ और पहले की अपेक्षा और भी गौरवमंडित करके भक्तिभाव से उसे उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो!" ___स्वामी विवेकानंद
बहुत ही सुन्दर कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteसुन्दरता का सुंदर वर्णन शब्दों का चयन और भी सुंदर
ReplyDeleteखूबसूरती से पिरोए गए अहसास. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
सुन्दरता का सुंदर वर्णन शब्दों का चयन और भी सुंदर
ReplyDeletenice...congratulations.
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