ये काली घटा ने देखो
क्या रंग दिखाया
नाच उठा मन मेरा
हृदय ने गीत गाया
जीवन लहलहाया
दादुर,कोयल,तोता,मैना ने
गीत गुनगुनाया
तप्त धरती शीतल हुई
बूंदे टपटपाया
धरती ने आसमान को छोड़
बादल को गले लगाया
रवि ज्योति मंद पड़ा
मेघ गड़गड़ाया
नृत्य मयूर का देख
ये मन मुस्कराया
ishkiya...badi dhe... |
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
सुन्दर प्रकृति चित्रण ...जो रंग लेखन का है ..पढ़ने में असुविधा हुई ...
ReplyDeleteSundar
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
विरक्ति पथ
अच्छी पंक्तिया
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया..................माफी चाहता हूँ..