इस सूने कमरे में है बस
मै और मेरी तन्हाई
दीवारों का रंग पड गया फीका
थक गयी आँखे पर वो न आयी
मै और मेरी तन्हाई
दीवारों का रंग पड गया फीका
थक गयी आँखे पर वो न आयी
छवि जो उसकी दिल में समाया
दीवारों पर टांग दिया
तू नही पर तेरी छवि से ही
टूटे मन को बहला लिया
दीवारों पर टांग दिया
तू नही पर तेरी छवि से ही
टूटे मन को बहला लिया
पर क्या करूँ इस अकेलेपन का
बूँद-बूँद मन को रिसता है
उस मन को भी न तज पाऊँ मै
जिस मन में वो छब बसता है
बूँद-बूँद मन को रिसता है
उस मन को भी न तज पाऊँ मै
जिस मन में वो छब बसता है
शायद वो आ जाए एक दिन
एकाकी घर संवर जाए
इस निस्संग एकाकीपन को
साथ कभी तेरा मिल जाए
एकाकी घर संवर जाए
इस निस्संग एकाकीपन को
साथ कभी तेरा मिल जाए
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्!"
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योगीराज श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई!